Rama Ekadashi 2025: शुभ योग में आज रमा एकादशी व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, भोग और आरती
Rama Ekadashi Vrat 2025 Today: आज रमा एकादशी का उपवास किया जाएगा, हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी का व्रत किया जाता है. दिवाली से पहले आने वाली इस एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि रमा माता लक्ष्मी का दूसरा नाम है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करने से सभी दुखों का अंत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है. विष्णुधर्मोत्तर पुराण कहता है कि ‘रमा एकादशीं कृत्वा न पुनर्जन्म लभ्यते’ अर्थात इस व्रत को करने वाले को पुनर्जन्म नहीं होता है, वह सीधे विष्णु धाम को प्राप्त होता है. साथ ही इस व्रत के करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर फल मिलता है और मनुष्य को सभी सुख और ऐशवर्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं रमा एकदाशी व्रत का महत्व, पूजा विधि, मंत्र, भोग…
रमा एकादशी का महत्व
रमा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित होता है. मान्यता है कि इस दिन उपवास करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य मिलता है और देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है. रमा एकादशी के व्रत की कथा के अनुसार, राजा मुचुकुंद ने इस व्रत को कर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाया था. तभी से यह व्रत धन-समृद्धि और सुखी जीवन की कामना के लिए रखा जाता है. रमा एकादशी दीपावली के चार दिन पहले पड़ती है, यह व्रत पुण्य कार्य का संचय करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजन किया जाता है.
रमा एकादशी पूजा मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त: 11:43 ए एम से 12:29 पी एम
अमृत काल: 11:26 ए एम से 01:07 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:01 पी एम से 02:46 पी एम
रमा एकादशी पर शुक्ल योग और ब्रह्म योग बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. साथ ही रमा एकादशी पर सूर्य तुला राशि में गोचर करने वाले हैं, इस तरह तुला राशि में सूर्य, बुध और मंगल ग्रह की युति बन रही है, जिससे कई शुभ योग बन रहे हैं. रमा एकादशी पर सूर्य गोचर से त्रिग्रही योग, बुधादित्य योग और आदित्य मंगल योग बन रहा है. स्कंद पुराण में कहा गया है कि ‘यदा रमा एकादशी शुभयोगे भवेत तदा सहस्रयज्ञफलं लभ्यते’ अर्थात जब यह एकादशी शुभ योग में आती है, तो इसका फल हजार यज्ञों के बराबर होता है.
भोग और प्रसाद
रमा एकादशी पर भगवान विष्णु को पंचामृत, फल, तुलसी दल, खीर, मालपुआ और पंजीरी का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि तुलसी और खीर का भोग लगाने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं.
रमा एकादशी मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।।
ॐ रमायै नमः, लक्ष्म्यै नमः, नारायणाय नमः
रमा एकादशी पूजा विधि
दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन, झूठ, क्रोध, और काम से दूर रहें. एकादशी के दिन स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें. अब शुद्ध घी का दीप जलाएं और प्रतिमा या तस्वीर पर रोली, चावल, पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें. श्रीहरि को पीले पुष्प और लक्ष्मीजी को लाल कमल चढ़ाएं. शंख और घंटी से आरती करें. विष्णु सहस्रनाम और रमा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. व्रत के दौरान एक बार फलाहार करें या निर्जल उपवास रखें. शाम को पुनः आरती करें और प्रसाद बांटें. अगले दिन द्वादशी तिथि पर पारण कर व्रत पूरा करें.

विष्णुजी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे।
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी,
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी,
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता,
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति।
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे,
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे।
ॐ जय जगदीश हरे।
भगवान विष्णु की जय, माता लक्ष्मी की जय…


