Sawan Somwar vrat 2025 Today: शुभ योग में आज सावन का चौथा सोमवार, जानें पूजा विधि, महत्व, मुहूर्त, आरती और मंत्र
सावन सोमवार व्रत का महत्व
आज सावन का चौथा और अंतिम सोमवार है और इस दिन व्रत करके शिव-पार्वती पूजन के लिए उत्तम माना जाता है. मान्यता है कि सावन सोमवार का व्रत करने से सभी पाप व दुख नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भक्तजन विशेषरूप से रुद्राभिषेक, दूध, बेलपत्र, जल, शिव चालीसा, महामृत्युंजय जाप आदि करते हैं. सावन का अंतिम अंतिम सोमवार विशेष रूप से ज्योतिषीय रूप से उत्क्रमण काल होता है, जब भावनात्मक और आध्यात्मिक ऊर्जा चरम पर होती है. यह दिन राहु, शनि, चंद्र, केतु आदि के दुष्प्रभाव से छुटकारा दिलाने वाला माना गया है.
सावन सोमवार व्रत शुभ योग
सावन के अंतिम सोमवार को कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे आज के दिन का महत्व भी बढ़ गया है. सावन के अंतिम सोमवार को सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, गजकेसरी योग, ब्रह्म योग और इंद्र नामक योग बन रहे हैं. इन शुभ योग में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करने से हर सुख की प्राप्ति होती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है. जो भक्त सावन के सभी सोमवारों को व्रत करते हैं, अंतिम सोमवार पर वे अपना संकल्प पूर्ण करते हैं. यह दिन संपूर्ण व्रत का फल देने वाला माना गया है.
पंचांग के अनुसार, 4 अगस्त को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:20 से 5:02 बजे तक रहेगा, जो जलाभिषेक के लिए सर्वोत्तम समय है. इसके अलावा, अभिजीत मुहूर्त दोपहर 2:42 से 3:36 बजे तक और अमृत काल शाम 5:47 से 7:34 बजे तक रहेगा. सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5:44 से रात 9:12 बजे तक रहेगा, जो कार्य सिद्धि और समृद्धि के लिए शुभ माना जाता है. इंद्र योग सुबह 7:06 से 7:25 बजे तक रहेगा, जो आत्मविश्वास और सफलता का प्रतीक है. चंद्रमा अनुराधा और चित्रा नक्षत्र में वृश्चिक राशि में गोचर करेगा, जो पूजा को और फलदायी बनाएगा. इन शुभ मुहूर्त में आप शिव पूजन कर सकते हैं.
सावन के अंतिम सोमवार को शिववास – सभा में – 11:41 ए एम तक, इसके बाद क्रीड़ा में.
आज ब्रह्ममुहूर्त में उठें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और ॐ नमः शिवाय का उच्चारण कर व्रत और पूजा का संकल्प करें. इसके बाद पास के शिवालय में जाकर शिव परिवार को प्रणाम करें और शिवलिंग पर जल, गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी, शक्कर से अभिषेक करें. 11 या 21 बेलपत्र, धतूरा, आक, शमी पत्र शिवलिंग पर अर्पित करें. काले तिल, अक्षत (चावल), चंदन, भस्म, कपूर, दीपक, धूप, नैवेद्य अर्पित करें. साथ ही मन ही मन ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करते रहें. इसके बाद दीपक व धूप जलाएं, और शिव चालीसा या रुद्राष्टक का पाठ करें. फिर रूद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र या पंचाक्षर मंत्र (ॐ नमः शिवाय) का 108 बार जाप करें. इसके बाद शिव आरती करें और फल/मिठाई का नैवेद्य अर्पित करें. इसी विधि के साथ प्रदोष काल में भी शिवालय जाकर पूजा करें.

पंचाक्षरी मंत्र
ॐ नमः शिवाय
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
शिव ध्यान मंत्र
ॐ शंकराय महादेवाय हराय चन्द्रचूड़ाय नमः॥
ॐ ह्रीं नमः शिवाय॥
शिवजी की आरती
सावन सोमवार की आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन, वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज, दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर, बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडल, चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी, जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित, ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरती, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥


