Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष में कौए को भोजन क्यों कराते हैं? पितरों से इसका क्या संबंध, पढ़ें पौराणिक कथा

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष में कौए को भोजन क्यों कराते हैं? पितरों से इसका क्या संबंध, पढ़ें पौराणिक कथा

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Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष में कौवों को भोजन कराना शुभ माना जाता है क्योंकि धार्मिक मान्यता अनुसार उनके द्वारा ग्रहण किया भोजन पितरों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा तृप्त होती है.

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष में कौए को भोजन क्यों कराते हैं? पढ़ें पौराणिक कथाजानिए, पितृपक्ष में कौवों को भोजन क्यों कराया जाता है. (AI)
Pitru Paksha 2025: सनातन धर्म में पितृपक्ष का बहुत महत्व है. आज यानी 14 सितंबर को पितृपक्ष का 9वां श्राद्ध है. इसकी 7 सितंबर से शुरुआत और समापन 21 सितंबर 2025 को होगा. पितृपक्ष 16 दिन चलता है और इन महत्वपूर्ण दिनों में पूर्वजों को याद किया जाता है. इस दौरान लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं. मृतात्माओं के नाम पर श्रद्धा पूर्वक जो अन्न-जल, वस्त्र ब्राह्मणों को दान दिया जाता है. इस दौरान एक और कर्म किया जाता है, जिसके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है. यह कर्म है कौवों को भोजन कराना. अब सवाल है कि आखिर श्राद्ध में कौवों को भोजन क्यों कराया जाता है? कौवों की पौराणिक कथा क्या है? आइए जानते हैं इस बारे में-

श्राद्ध के दौरान लोग कौवों को भोजन कराते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे की वजह क्या है? बता दें कि, धर्म शास्त्रों में जिस तरह से सभी चीजों के पीछे कोई न कोई वजह बताई गई है, ठीक उसी तरह से धार्मिक ग्रंथों में कौवे को भी भोजन कराने बारे में भी बताया गया है.

… इसलिए श्राद्ध में कौवों को कराया जाता भोजन?

आमतौर पर कौवों का घर आना ठीक नहीं माना जाता है. वहीं, लेकिन पितृ पक्ष के दौरान लोग कौवों का इंतजार करते हैं. इसके पीछे की मान्यता है कि, पितृ पक्ष के दिनों में पितरों के लिए निकाला गया भोजन अगर कौआ उसका अंश ग्रहण कर लेता है तो पितर तृप्त हो जाते हैं. इसके बाद पितरों का आशीर्वाद मिलता है. धार्मिक मान्यता है कि, कौए द्वारा खाया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त होता है. इसलिए पितृ पक्ष के दौरान कौवों को भोजन कराना शुभ माना जाता है.

कौए को भोजन कराने से जुड़ी पौराणिक कथा?

कौवों को भोजन कराने की एक कहानी इन्द्र पुत्र से भी जुड़ी है. पौराणिक कथा के अनुसार, इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था. यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था.तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी. जब उसने अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा. तभी से श्राद्ध में कौवों को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है. यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौवों को ही पहले भोजन कराया जाता है.

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