Labh Panchami 2025: सौभाग्य और समृद्धि का पर्व है लाभपंचमी, इस दिन 5 अमृतमय वचनों को रखें याद, खूब होगा धन लाभ!

Labh Panchami 2025: सौभाग्य और समृद्धि का पर्व है लाभपंचमी, इस दिन 5 अमृतमय वचनों को रखें याद, खूब होगा धन लाभ!

Labh Panchami 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लाभ पंचमी कहते हैं. इस बार यह तिथि 26 अक्तूबर 2025 दिन रविवार को है. इसे ‘सौभाग्य पंचमी भी कहते हैं. जैन लोग इसको ‘ज्ञान पंचमी कहते हैं. व्यापारी लोग अपने धंधे का मुहूर्त आदि लाभ पंचमी को ही करते हैं. इस दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा सुबह 10 बजकर 46 मिनट तक वृश्चिक राशि में रहेंगे. इसके बाद धनु राशि में गोचर करेंगे. धार्मिक मान्यता के अनुसार, लाभ पंचमी के दिन धर्मसम्मत जो भी धंधा शुरू किया जाता है उसमें बहुत बरकत होती है. यह सब तो ठीक है, लेकिन संतों-महापुरुषों के मार्गदर्शन-अनुसार चलने का निश्चय करके भगवद्भक्ति के प्रभाव से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन पांचों विकारों के प्रभाव खत्म होता है. इसलिए हमेशा 5 अमृत वचनों को याद रखना चाहिए-

लाभपंचमी के पांच अमृतमय वचन

पहली बात: ‘भगवान हमारे हैं, हम भगवान के हैं- ऐसा मानने से भगवान में प्रीति पैदा होगी. ‘शरीर, घर, संबंधी जन्म के पहले नहीं थे और मरने के बाद नहीं रहेंगे. लेकिन, परमात्मा मेरे साथ सदैव हैं- ऐसा सोचने से आपको लाभ पंचमी के पहले आचमन द्वारा अमृतपान का लाभ मिलेगा.

दूसरी बात: हम भगवान की सृष्टि में रहते हैं, भगवान की बनायी हुई दुनिया में रहते हैं. तीर्थभूमि में रहने से पुण्य मानते हैं तो जहां हम-आप रह रहे हैं वहां की भूमि भी तो भगवान की है; सूरज, चांद, हवाएं, श्वास, धड़कन सब-के-सब भगवान के हैं, तो हम तो भगवान की दुनिया में, भगवान के घर में रहते हैं. मगन निवास, अमथा निवास, गोकुल निवास ये सब निवास ऊपर-ऊपर से हैं, लेकिन सब-के-सब भगवान के निवास में ही रहते हैं. यह सबको पक्का समझ लेना चाहिए. ऐसा करने से आपके अंतःकरण में भगवद्धाम में रहने का पुण्यभाव जगेगा.

तीसरी बात: आप जो कुछ भोजन करते हैं भगवान का सुमिरन करके, भगवान को मानसिक रूप से भोग लगाके करें. इससे आपका पेट तो भरेगा, हृदय भी भगवद्भाव से भर जायेगा.

चौथी बात: माता-पिता की, गरीब की, पडोसी की, जिस किसीकी सेवा करो तो ‘यह बेचारा है… मैं इसकी सेवा करता हूं… मैं नहीं होता तो इसका क्या होता… – ऐसा नहीं सोचो; भगवान के नाते सेवाकार्य कर लो और अपने को कर्ता मत मानो.

पांचवीं बात: अपने तन-मन को, बुद्धि को विशाल बनाते जाओ. घर से, मोहल्ले से, गांव से, राज्य से, राष्ट्र से भी आगे विश्व में अपनी मति को फैलाते जाओ और ‘सबका मंगल, सबका भला हो, सबका कल्याण हो, सबको सुख-शांति मिले, सर्वे भवन्तु सुखिनः… इस प्रकार की भावना करके अपने दिल को बडा बनाते जाओ. परिवार के भले के लिए अपने भले का आग्रह छोड़ दो, समाज के भले के लिए परिवार के हित का आग्रह छोड़ दो, आकर्षण और मोह छोड दो.

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