Hindi and Chhattisgarhi Devotional Songs

छत्तीसगढ़ राज्य के प्रमुख लोकगायक

भारतीय संस्कृति में भक्ति और ध्यान का महत्व बहुत उच्च है, और इसका प्रतिबिम्ब संगीत में भी दिखता है। भारतीय भक्ति संगीत का इतिहास बहुत पुराना है और यह विभिन्न भागों में विविधता और समृद्धि से देखा जा सकता है।

भारतीय भक्ति संगीत के प्रमुख रूपों में भजन, कीर्तन, आरती और ध्यान शामिल हैं। ये सभी रूप भक्ति और आध्यात्मिकता के अभिव्यक्ति के रूप में महत्वपूर्ण हैं।

भजन एक प्रमुख भारतीय भक्ति संगीत रूप है जो आमतौर पर भगवान की महिमा और भक्ति का अभिव्यक्ति करता है। ये गीत अक्सर भगवान, देवी, देवताओं या गुरुओं की स्तुति करने के लिए गाए जाते हैं।

कीर्तन भी भगवान की महिमा और कीर्तन का महत्व व्यक्त करने का एक विशेष तरीका है। ये सामूहिक रूप से गाए जाते हैं और उनमें सामाजिक समरसता और भक्ति की भावना का प्रकटीकरण होता है।

आरती भी भगवान की पूजा और स्तुति के लिए गाई जाती है। इन्हें अक्सर भक्तों द्वारा मंदिरों और धार्मिक स्थलों में प्रदर्शित किया जाता है, और इन्हें ध्यान की भावना के साथ प्रस्तुत किया जाता है।

ध्यान, जिसे ध्यान योग भी कहा जाता है, आत्मा की शांति और संयम की प्राप्ति के लिए उत्कृष्ट माना जाता है। ध्यान के गीत अक्सर मन की शांति और आत्मा के प्रकटीकरण की प्रेरणा देने के लिए कहे जाते हैं।

भारतीय भक्ति संगीत न केवल धार्मिक भावनाओं का अभिव्यक्ति करता है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देता है और लोगों को एक साथ आनंदित और संबलित महसूस कराता है।

Shiv Tandav Strotam Lyrics-

Shiv tandav Stotram Lyrics: जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥ जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥ धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥ जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे। मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥ सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥ ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥ करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके। धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥ नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः। निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥ प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥ अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌। स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥ जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्। धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥ दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः। तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥ कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥ निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः। तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥ प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥ इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌। हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥16 पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे । तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥ ॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥