Chhath Surya Arghya Significance: छठ पूजा के तीसरे दिन अस्तगामी यानी डूबते सूर्य को क्यों दिया जाता है अर्घ्य, जानें
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Chhath Puja Sandhya Arag 2025 Significance: छठ पूजा बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है. छठी मैया और सूर्यदेव को समर्पित इस पर्व के तीसरे दिन अस्तगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. आइए जानते हैं आखिर छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को क्यों दिया जाता है अर्घ्य…
Chhath Puja Me Dubte Surya Ko Arghya Kyu Diya Jata Hai: लोकआस्था के चार दिवसीय पर्व छठ पूजा के तीसरे दिन अस्तगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. यह पर्व छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा उपासना के लिए समर्पित है. छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय, दूसरा दिन खरना और तीसरे दिन अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देना और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसी के साथ 36 घंटे का निर्जला उपवास पूरा होता है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का हर दिन अपनी एक खास धार्मिक और वैज्ञानिक अहमियत रखता है. तीसरे दिन यानी संध्या अर्घ्य के दिन भक्त डूबते हुए सूर्य को जल अर्पित करते हैं. ज्यादातर लोगों के मन सवाल आता है कि हमेशा उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता लेकिन छठ पूजा में आखिर डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा क्यों है?

सूर्य को अर्घ्य देना कृतज्ञता का प्रतीक
हिंदू धर्म में सूर्य को साक्षात देवता माना गया है और वह पृथ्वी के इकलौते जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के दाता हैं. छठ पूजा में सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा (प्रत्युषा) की पूजा होती है. तीसरे दिन जब सूर्य अस्त होने लगता है, तब भक्त उसे धन्यवाद देते हैं, दिनभर की रोशनी, ऊर्जा और जीवन देने के लिए. यह अर्घ्य कृतज्ञता का प्रतीक है. मान्यता है कि अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देने से मनुष्य अपने जीवन के उतार-चढ़ाव में संतुलन और धैर्य बनाए रखता है. यह भी कहा जाता है कि जब सूर्य ढलता है, तब उसकी किरणें शरीर पर शीतल असर डालती हैं और इससे मन-तन दोनों को शांति मिलती है. घाटों पर एक साथ डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का दृश्य एकता, समानता और सामूहिक आस्था का प्रतीक बन जाता है.
इसलिए अस्तगामी यानी डूबते सूर्य दिया जाता है अर्घ्य
छठ पूजा के तीसरे दिन किसी नदी, तालाब या कुंड में खड़े होकर शाम के समय अस्तगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता है कि शाम के समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं. मान्यताओ में प्रत्यूषा को शाम के समय की देवी माना गया है. वहीं पहली पत्नी उषा को सुबह की किरण की देवी माना गया है. कहा जाता है कि शाम के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में चल रही टेंशन से राहत मिलती है और जीवन में शांति आती है. अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देना यह भी सिखाता है कि जीवन में केवल सफलता के समय ही नहीं, कठिनाइयों के क्षणों में भी श्रद्धा और विश्वास बनाए रखना चाहिए.
वैज्ञानिक दृष्टि से
संध्याकालीन सूर्य की किरणों में अल्ट्रावायलेट रेडिएशन का प्रभाव कम होता है. इस समय सूर्य की लालिमा और हल्की गर्मी शरीर के लिए लाभकारी मानी जाती है और यह त्वचा, आंखों और हड्डियों के लिए उपयोगी विटामिन D प्रदान करती है. पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की प्रक्रिया ध्यान और योग की तरह मानसिक शांति देती है.

उगते सूर्य को क्यों दिया जाता है अर्घ्य
छठ पूजा के चौथे दिन यानी उषाकालीन अर्घ्य में भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं.यह जीवन में नई शुरुआत और सकारात्मकता का प्रतीक है. इस तरह छठ का यह पर्व सूर्य की दोनों अवस्थाओं अस्त और उदय को समान सम्मान देता है. साथ ही इस समय भगवान सूर्य पहली पत्नी उषा के साथ होते हैं, जो भोर (सुबह) की किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें


