Chamundeshwari Devi Mandir: हर नवरात्रि क्यों जुटती है भक्तों की भीड़ चामुंडा धाम में? पढ़िए 1000 साल पुराने मंदिर का इतिहास
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Chamundeshwari Devi Mandir: भारत की धार्मिक धरोहरों में चामुंडेश्वरी मंदिर एक अनोखा स्थान रखता है. कर्नाटक के मैसूर शहर से कुछ दूरी पर स्थित यह मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि इतिहास और परंपरा का जीवंत उदाहरण भी है. यह मंदिर देवी चामुंडा को समर्पित है.

मंदिर की खासियत
यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1000 मीटर ऊंचाई पर चामुंडी पहाड़ी पर स्थित है. यहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के अलावा सीढ़ियों का भी रास्ता है, जिसमें लगभग एक हजार सीढ़ियां चढ़नी होती हैं. रास्ते में जगह-जगह दर्शनार्थियों के लिए विश्राम स्थल और देवी के अन्य स्वरूपों की मूर्तियां मिलती हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक की दीवारों पर की गई नक्काशी बेहद आकर्षक है. यहां एक विशाल नंदी की प्रतिमा भी स्थित है, जो पत्थर से बनी हुई है और श्रद्धालुओं के आकर्षण का बड़ा कारण है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की मूर्ति स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित रहती है.
देवी चामुंडा का प्रचंड रूप और महिषासुर का अंत
इस मंदिर की कहानी जुड़ी है उस समय से, जब महिषासुर नामक राक्षस ने अपने बल और वरदान के दम पर धरती और स्वर्ग लोक में आतंक फैला रखा था. उसने यह वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों ही हो सकती है. देवताओं ने जब त्रस्त होकर देवी दुर्गा की आराधना की, तो उन्होंने चामुंडा रूप धारण कर महिषासुर का संहार किया. कहा जाता है कि यह युद्ध कई दिनों तक चला और अंत में देवी ने राक्षस का वध कर धर्म की स्थापना की. इसी कारण से देवी को यहां चामुंडेश्वरी कहा जाता है और उन्हें महिषासुरमर्दिनी के रूप में पूजा जाता है. मंदिर के पास महिषासुर की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है, जो इस कथा की याद दिलाती है.
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सबसे पहले 12वीं सदी में होयसला वंश के राजा विष्णुवर्धन ने करवाया था. बाद में वाडियार वंश ने इस मंदिर को और भव्य रूप दिया. मैसूर के राजा चामराजा वाडियार इस मंदिर के बड़े भक्त माने जाते थे. कहते हैं कि एक बार वे जब पूजा कर रहे थे, तभी वहां बिजली गिरी लेकिन वे सुरक्षित बच निकले. इस चमत्कार को देवी की कृपा माना गया. आज भी मां चामुंडेश्वरी को मैसूर राजघराने की कुलदेवी माना जाता है. हर साल दशहरे के मौके पर राजा के वंशज यहां विशेष पूजा करते हैं.

शक्तिपीठ और धार्मिक मान्यता
लोकमान्यता है कि देवी सती के बाल इसी स्थान पर गिरे थे, जिससे यह स्थान शक्तिपीठ बन गया. इसलिए इसे क्रौंच पीठम भी कहा जाता है. मंदिर के बाहर एक विशाल नंदी की मूर्ति है, जिसे देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं. मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी और स्थापत्य शैली देखने लायक है.
दर्शन का समय
इस मंदिर में दर्शन सुबह 7:30 बजे से दोपहर 2 बजे तक और फिर दोपहर 3:30 से शाम 6 बजे तक होते हैं. वहीं अभिषेक सुबह 6 बजे से 7:30 तक और शाम 6 से 7:30 तक किया जाता है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)