क्यों टांगा जाता है बाएं पैर का काला जूता? जानें नजर बट्टू से जुड़ा विश्वास और असर
Last Updated:
बागेश्वर: उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में आज भी कई ऐसी लोक परंपराएं जीवित हैं, जो पीढ़ियों से आस्था और विश्वास के साथ निभाई जा रही हैं. इन्हीं में से एक है बाएं पैर के काले जूते को “नजर बट्टू” के रूप में टांगने की परंपरा.
उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में बाएं पैर के काले जूते को “नजर बट्टू” के रूप में टांगने की परंपरा सदियों पुरानी मानी जाती है. लोक विश्वास के अनुसार यह उपाय बुरी नजर, ईर्ष्या और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव करता है. गांवों से लेकर कस्बों तक आज भी कई घरों, दुकानों और वाहनों के बाहर पुराना काला जूता टंगा दिखाई देता है. यह परंपरा केवल एक वस्तु टांगने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी आस्था और सांस्कृतिक विश्वास जुड़ा हुआ है. जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाया जा रहा है.

कुमाऊं की लोक मान्यताओं में काले रंग को विशेष महत्व दिया गया है. माना जाता है कि काला रंग नकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर खींच लेता है और उसे निष्क्रिय कर देता है. इसी कारण ताबीज, धागे या अन्य नजर बट्टू के उपायों में काले रंग का प्रयोग होता है. बाएं पैर का काला जूता इसी सिद्धांत पर आधारित है. लोगों का विश्वास है कि यह बुरी नजर को घर या वाहन तक पहुंचने से पहले ही रोक लेता है, और नुकसान से बचाव करता है.

लोक परंपराओं में बाएं और दाएं पक्ष को लेकर भी अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं. कुमाऊं क्षेत्र में माना जाता है कि बाएं पक्ष से जुड़ी वस्तुएं बुरी नजर के प्रभाव को कमजोर कर देती हैं. इसी वजह से नजर बट्टू के लिए विशेष रूप से बाएं पैर का जूता ही उपयोग में लाया जाता है. यह विश्वास पूरी तरह से लोक आस्था पर आधारित है, लेकिन वर्षों से चले आ रहे अनुभवों के कारण लोग इसे प्रभावी मानते हैं. आज भी इस परंपरा को निभाते हैं.
Add News18 as
Preferred Source on Google

जब कोई नया घर बनता है या नई गाड़ी खरीदी जाती है, तो नजर बट्टू लगाने की परंपरा विशेष रूप से निभाई जाती है. माना जाता है कि नई चीजें लोगों की नजर जल्दी आकर्षित करती हैं, जिससे ईर्ष्या या बुरी नजर लगने की संभावना बढ़ जाती है. इसी डर से लोग निर्माण पूरा होने या वाहन खरीदने के बाद तुरंत काला जूता टांग देते हैं. यह उपाय उन्हें मानसिक संतोष देता है कि उन्होंने अपने घर या वाहन की सुरक्षा कर ली है.

नजर बट्टू को लेकर यह बहस भी होती रही है कि यह अंधविश्वास है. हालांकि कई लोग इसे केवल आस्था का विषय मानते हैं, लेकिन इसके पीछे मनोवैज्ञानिक पहलू भी जुड़ा हुआ है. जब व्यक्ति को लगता है कि उसने बुरी नजर से बचाव का उपाय कर लिया है. तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता है. डर और आशंका कम होती है, जिससे वह अधिक सकारात्मक सोच के साथ जीवन और कार्य करता है.

कुमाऊं के ग्रामीण जीवन में लोक परंपराओं का खास स्थान है. यहां लोग प्रकृति, देव आस्था और सामाजिक विश्वासों के साथ अपना जीवन जीते हैं. नजर बट्टू जैसी परंपराएं केवल सुरक्षा का उपाय नहीं, बल्कि सामूहिक संस्कृति की पहचान भी हैं. गांवों में आज भी बुजुर्ग नई पीढ़ी को इन परंपराओं का महत्व समझाते हैं. यही कारण है कि आधुनिक समय के बावजूद ये विश्वास पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं.

बदलते समय के साथ युवा पीढ़ी आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक सोच की ओर अधिक झुक रही है. कई युवा नजर बट्टू जैसी परंपराओं को अंधविश्वास मानते हैं और इन्हें अपनाने से बचते हैं. फिर भी पारिवारिक और सामाजिक दबाव के चलते कई जगह यह परंपरा अब भी जारी है. खासतौर पर गांवों और छोटे कस्बों में युवा भी बुजुर्गों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस देसी उपाय को अपनाते नजर आते हैं.

आज भी कुमाऊं के कई गांवों, बाजारों और सड़कों पर घरों और वाहनों के बाहर टंगा काला जूता नजर आ जाता है. यह दृश्य इस बात की गवाही देता है कि लोक विश्वास और परंपराएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं. नजर बट्टू भले ही वैज्ञानिक प्रमाणों पर खरा न उतरे, लेकिन आस्था, मनोवैज्ञानिक संतुलन और सांस्कृतिक विरासत के रूप में इसकी पहचान आज भी बनी हुई है, और आने वाली पीढ़ियों तक इसके किस्से चलते रहेंगें.


