क्या सिर्फ मंत्र जाप से प्रसन्न होते हैं महादेव? कितनी बार करें ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप, जानें विधि
Chanting Mantra: भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है. वे न सिर्फ संहार के देवता हैं, बल्कि करुणा, तपस्या और सरलता के प्रतीक भी हैं. महादेव का स्वभाव बहुत सहज माना गया है, इसी वजह से उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है. कहा जाता है कि अगर सच्चे मन से पुकारा जाए, तो शिव तुरंत अपने भक्तों की सुन लेते हैं. न उन्हें दिखावे की पूजा चाहिए और न ही ज्यादा तामझाम. बस मन साफ हो और भाव में सच्चाई हो. शिव भक्ति में मंत्र जाप का खास महत्व है, और इसमें सबसे ऊपर आता है पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय”. यह मंत्र सिर्फ शब्दों का समूह नहीं है, बल्कि शिव चेतना से जुड़ने का रास्ता माना जाता है. रोजमर्रा की भागदौड़, तनाव, डर और उलझनों से भरी जिंदगी में यह मंत्र मन को स्थिर करता है और भीतर शांति भरता है. बहुत से लोगों के मन में सवाल रहता है कि “ॐ नमः शिवाय” का जाप कितनी बार करना चाहिए, किस समय करना सही रहता है और क्या वाकई इससे जीवन में बदलाव आता है. कुछ लोग इसे सिर्फ धार्मिक कर्म मानते हैं, तो कुछ इसे ध्यान और आत्मिक विकास का जरिया मानते हैं. सच यह है कि इस मंत्र का असर व्यक्ति के भाव, श्रद्धा और निरंतर अभ्यास पर निर्भर करता है. इस आर्टिकल में हम आसान भाषा में जानेंगे कि “ॐ नमः शिवाय” मंत्र की उत्पत्ति क्या है, इसका महत्व क्यों इतना गहरा है, इसका जाप कितनी बार करना चाहिए और किस तरह से करने पर महादेव की कृपा जल्दी मिलती है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
1. “ॐ नमः शिवाय” क्यों माना जाता है मूल मंत्र
“ॐ नमः शिवाय” को भगवान शिव का मूल मंत्र माना जाता है. इस मंत्र का मतलब है-मैं शिव तत्व को नमन करता हूं. जब कोई भक्त इस मंत्र का जाप करता है, तो उसका ध्यान धीरे-धीरे बाहरी दुनिया से हटकर भीतर की शांति की ओर जाता है. नियमित जाप से मन के डर, नकारात्मक सोच और बेचैनी कम होने लगती है. ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के जाप से दुख, गरीबी, बीमारी और मन के भ्रम दूर होते हैं. व्यक्ति भीतर से मजबूत महसूस करने लगता है और जीवन को देखने का नजरिया बदल जाता है.
2. मंत्र की उत्पत्ति और इसका भाव
मान्यता है कि “ॐ नमः शिवाय” मंत्र की उत्पत्ति उस समय हुई, जब भगवान शिव अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे. उसी दौरान शिव के पांच मुख प्रकट हुए, जो पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु-का संकेत देते हैं. ये पांचों तत्व मिलकर जीवन की रचना करते हैं. इस मंत्र के जरिए इंसान खुद को इन तत्वों के संतुलन से जोड़ता है, जिससे जीवन में स्थिरता आती है.
3. सबसे पहले प्रकट हुई ॐ की ध्वनि
कहा जाता है कि सृष्टि में सबसे पहले “ॐ” की ध्वनि गूंजी. इसके बाद शिव के पांच मुखों से ना, म, शि, वा, या-ये पांच अक्षर निकले. इनसे बना “ॐ नमः शिवाय”, जिसे सृष्टि का पहला मंत्र भी कहा जाता है.
जो व्यक्ति लगातार इस मंत्र में मन लगाता है, उसका अहंकार धीरे-धीरे कम होने लगता है. ऐसा माना जाता है कि यह मंत्र शिव ज्ञान का सार है और आत्मिक जागरूकता की ओर ले जाता है.
4. ॐ नमः शिवाय का जाप कितनी बार करना चाहिए
इस मंत्र के जाप की कोई सख्त सीमा नहीं है. जितना ज्यादा श्रद्धा से किया जाए, उतना ही अच्छा माना जाता है. फिर भी आम तौर पर एक माला यानी 108 बार जाप करना सबसे शुभ माना गया है, अगर कोई व्यक्ति रोज एक निश्चित संख्या में जाप करता है, तो उसका मन जल्दी एकाग्र होने लगता है. पूर्व दिशा की ओर मुख करके, शांत जगह पर बैठकर जाप करना ज्यादा असरदार माना जाता है.
5. अनुशंसित जाप अभ्यास
अगर आप शुरुआत कर रहे हैं, तो रोज 108 बार मंत्र जाप से शुरुआत करें. इससे मन को गहरी शांति मिलती है. लगातार 27 दिनों तक हर दिन एक माला का जाप करने से मन में सकारात्मक बदलाव साफ नजर आने लगता है. कई भक्त मानते हैं कि हर माला के साथ मंत्र की शक्ति और ज्यादा जागृत होती जाती है. समय के साथ यह जाप आदत बन जाता है, जो जीवन को संतुलित रखता है.
6. 11 से 108 बार तक कर सकते हैं जाप
हर व्यक्ति की क्षमता अलग होती है. कोई 11 बार से शुरुआत करता है, तो कोई 108 बार तक जाता है. अगर किसी खास मनोकामना के लिए जाप कर रहे हैं, तो सोमवार का दिन सबसे शुभ माना जाता है.
सोमवार को शिव जी का दिन माना जाता है, इस दिन किया गया जाप जल्दी फल देता है, ऐसा भक्तों का विश्वास है.

7. हर दिन जाप करने का महत्व
अगर कोई व्यक्ति हर दिन पूरे मन से “ॐ नमः शिवाय” का जाप करता है, तो उसका असर सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं रहता. उसका व्यवहार, सोच और निर्णय लेने की क्षमता भी बेहतर होने लगती है. कहा जाता है कि सच्चे मन से किया गया जाप शिव को प्रसन्न करता है. इससे जीवन में सुख, शांति और संतुलन आता है और आध्यात्मिक रास्ता भी साफ होता है.


