काली मंदिर में जानवरों की बलि क्यों दी जाती है? जानिए इसके पीछे छिपा रहस्य और इसका महत्व

काली मंदिर में जानवरों की बलि क्यों दी जाती है? जानिए इसके पीछे छिपा रहस्य और इसका महत्व

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Mandir Me Bali Dene Ki Parampara : काली मंदिर में बलि देने की प्रथा केवल एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे जीवन-ऊर्जा, शक्ति और मानसिक आस्था जैसी गहरी मान्यताएं जुड़ी हैं. जानवर की बलि, नारियल फोड़ना, या नीबू काटना-इन सबका मूल उद्देश्य ऊर्जा को मुक्त करना और उसका सही दिशा में उपयोग करना है. जबकि आज कई लोग इसे हिंसा के रूप में देखते हैं, परंतु इतिहास और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसका मतलब शक्ति और ऊर्जा का संतुलन बनाए रखना है.

काली मंदिर में जानवरों की बलि क्यों दी जाती है? जानिए इसके पीछे छिपा रहस्यकाली मंदिर में बलि की परम्परा

Mandir Me Bali Dene Ki Parampara : आपने कई बार सुना होगा कि काली माता के मंदिरों में जानवरों की बलि दी जाती है. खासकर नवरात्र और अन्य उत्सवों के समय यह रिवाज और भी देखने को मिलता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि आखिर ये प्रथा क्यों है? क्या माता काली को सच में जानवरों का मांस चाहिए या इसके पीछे कोई और कारण है? भारत में कई मंदिरों में यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है. कुछ जगहों पर अब इसे बंद कर दिया गया है, लेकिन कई मंदिरों में आज भी यह जारी है. जानना दिलचस्प होगा कि बलि के पीछे न सिर्फ धार्मिक विश्वास बल्कि ऊर्जा और शक्ति से जुड़ी मान्यताएं भी छिपी हैं. इस आर्टिकल में हम समझेंगे भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से कि क्यों काली मंदिर में बलि दी जाती है, इसका इतिहास और इसका धार्मिक महत्व क्या है.

बलि देने की वजह क्या है?
ईशा फाउंडेशन और सद्गुरु के अनुसार, देवी-देवताओं के लिए कुछ विशेष ध्वनियां और क्रियाएं निर्धारित हैं. बलि का मतलब केवल जानवर को मारना नहीं है. यह एक तरह की ऊर्जा निकालने और उसे एक खास उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने की प्रक्रिया है. सद्गुरु बताते हैं कि काली मंदिर में अगर बलि बंद कर दी जाए, तो देवी की शक्ति में कमी आने का खतरा है. इस विश्वास के अनुसार, जीवन का यह बलिदान दूसरे जीवन के लिए ऊर्जा का स्रोत बनता है. यह पूरी प्रक्रिया ध्यान और विधि-विधान से जुड़ी होती है.

क्या भगवान बलि से खुश होते हैं?
यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या देवी-देवता सच में जानवरों की बलि देखकर प्रसन्न होते हैं. सद्गुरु का कहना है कि इसका भगवान से कोई लेना-देना नहीं है. बलि का उद्देश्य भगवान को खुश करना नहीं, बल्कि जीवन-ऊर्जा को मुक्त करना और उसका सही दिशा में इस्तेमाल करना है. यही वजह है कि दुनिया के हर हिस्से में, चाहे प्राचीन समय हो या आधुनिक, किसी न किसी रूप में बलि की प्रथा देखने को मिली है.

नारियल और नीबू भी बलि के रूप में
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सिर्फ जानवर ही नहीं, बल्कि नारियल तोड़ना या नीबू काटना भी एक तरह की बलि मानी जाती है. सद्गुरु बताते हैं कि इसका मकसद नई ऊर्जा को मुक्त करना और उसका सही उपयोग करना है. काली माता और भैरव के मंदिरों में जानवरों की बलि इसी ऊर्जा को नियंत्रित करने और विशेष उद्देश्य के लिए उपयोग करने के लिए की जाती है.

बलि के धार्मिक और सामाजिक पहलू
काली माता के मंदिरों में जानवरों की बलि एक पुरानी परंपरा है. इसका उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि यह सामाजिक और मानसिक मान्यताओं से भी जुड़ा है. लोग मानते हैं कि इससे माता काली प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर आशीर्वाद बरसाती हैं. वहीं, कई जगह अब यह प्रथा बदलती जा रही है और अधिकतर मंदिर अब जानवरों के बजाय अन्य वस्तुएं जैसे फल, नारियल, फूल आदि चढ़ाने का रिवाज अपना रहे हैं.

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Keerti Rajpoot

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