कल शुभ योग में सावन मास की अंतिम चतुर्दशी, सुख-समृद्धि के लिए ऐसे करें हर और हरि की पूजा

कल शुभ योग में सावन मास की अंतिम चतुर्दशी, सुख-समृद्धि के लिए ऐसे करें हर और हरि की पूजा

Sawan Last Chaturdashi Tithi 2025: सावन माह में चतुर्दशी तिथि और रवि योग का संयोग 6 अगस्त दिन गुरुवार को बन रहा है. इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव और विष्णु की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है.मान्यता है कि इस दिन पूजा अर्चना करने से सभी कष्ट व दुखों से मुक्ति मिलती है और हर कार्य सफल होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सावन मास की चतुर्दशी तिथि का अत्यंत धार्मिक और तांत्रिक महत्व है. चतुर्दशी तिथि के स्वामी स्वयं देवों के देव महादेव हैं और यह तिथि भगवान शिव की पूजा के साथ रात्रि साधना, तांत्रिक प्रयोग और पितृ शांति जैसे कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है. आइए जानते हैं सावन मास की अंतिम चतुर्दशी का महत्व और पूजा विधि.

सावन मास की अंतिम चतुर्दशी तिथि पर शुभ योग
दृक पंचांग के अनुसार, सूर्योदय सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 46 मिनट पर होगा. चंद्रमा धनु उपरांत मकर राशि पर संचार करेंगे और नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा दोपहर 2 बजकर 1 मिनट तक रहेगा, इसके बाद उत्तराषाढ़ा नक्षत्र रहेगा. साथ ही कल रवि योग और और प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है, जो काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके साथ ही विष्कम्भ योग का भी निर्माण हो रहा है, जो सुबह 7 बजकर 18 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 43 मिनट तक रहेगा. वहीं, राहुकाल दोपहर 2 बजकर 07 मिनट से 3 बजकर 47 मिनट तक रहेगा, इस दौरान पूजा से बचें.

सावन मास की अंतिम चतुर्दशी तिथि का महत्व
सावन की चतुर्दशी धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखती है. ऐसे में रवि योग इसे और भी खास और फलदायी बना देता है, जो दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है. मान्यता है कि इस दिन महादेव और नारायण की पूजा से सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है. सावन के अंतिम चतुर्दशी तिथि को बन रहे शुभ योग में शिव पूजन करने से हर कष्ट व दुख दूर होता है और व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. इस दिन रुद्राभिषेक, शिवलिंग पर जलाभिषेक, बिल्वपत्र अर्पण और महामृत्युंजय मंत्र का जप अत्यधिक फलदायी होता है.

पितृ कार्यों के लिए उपयुक्त तिथि
सावन मास की अंतिम चतुर्दशी तिथि विशेषकर गहन साधना, भूत-प्रेत बाधा निवारण, रक्षात्मक तंत्र प्रयोग एवं केतु-राहु संबंधी उपायों के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है. भैरव साधना, काली साधना, तथा केतु और पितृ दोष निवारण हेतु भी इस तिथि की रात्रि उपयुक्त होती है. चतुर्दशी को विशेषतः चौदस श्राद्ध या नरक चतुर्दशी जैसी तिथियों में पितरों के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण, या दान किया जाता है. सावन में चतुर्दशी पर जल तर्पण करने से पितरों को विशेष शांति मिलती है.

सावन मास की अंतिम चतुर्दशी पूजा विधि
धर्मशास्त्रों में पूजन विधि के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है. इसके लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. शिव मंदिर या घर में शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी चढ़ाएं. इसके बाद बेलपत्र, मदार, दूब, गुड़, काला तिल, अक्षत भस्म आदि अर्पित करें. विधि-विधान से पूजन के बाद ॐ नमः शिवाय, महामृत्युंजय मंत्र का जप करें. पूजन के बाद शिव चालीसा का पाठ करने के बाद आरती करें. इस दिन की पूजा से पारिवारिक सुख, आर्थिक समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ मिलता है. भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त या प्रदोष काल में पूजा करने की सलाह दी जाती है.

भगवान शिव के साथ करें भगवान नारायण की पूजा
महादेव की पूजा के बाद नारायण की पूजा का भी विशेष महत्व है. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को स्नान कराने के बाद रोली, चंदन, हल्दी चढ़ाएं. उनके समक्ष दीप, धूप जलाने के बाद नारायण को तुलसी पत्र, फूल और माता लक्ष्मी को फूल अर्पित करें. पूजन के बाद ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें. विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. पूजा के बाद गरीबों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा दान करें. इस दिन फलाहार या सात्विक भोजन करें.

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