बाईं ओर ही क्यों विराजमान है भगवान शिव के चंद्रमा, कैसे दर्शाता है उग्रता और करुणा का संगम, जानें कथा और अर्थ

बाईं ओर ही क्यों विराजमान है भगवान शिव के चंद्रमा, कैसे दर्शाता है उग्रता और करुणा का संगम, जानें कथा और अर्थ

Moon On Shiva Head: भगवान शिव का स्वरूप जितना रहस्यमयी है, उतना ही गहरा ज्ञान उसमें छिपा हुआ है. उनके शरीर का हर प्रतीक कुछ न कुछ संदेश देता है- चाहे वो गले का नाग हो, मस्तक का तीसरा नेत्र, शरीर पर लगी भस्म या सिर पर सजी जटाओं में बहती गंगा, लेकिन इन सबके बीच एक और रहस्य है जो बहुत कम लोग जानते हैं- शिवजी के मस्तक पर बाईं ओर विराजमान चंद्रमा का. आखिर भगवान शिव ने अपने सिर पर चंद्रमा को क्यों सजाया? और वो भी सिर्फ बाईं ओर ही क्यों?
कई लोग इसे बस एक अलंकरण मान लेते हैं, लेकिन असल में इसके पीछे गहरा अर्थ और पौराणिक कथा जुड़ी है. चंद्रमा केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि मानसिक शांति, संतुलन और भावनात्मक ऊर्जा का भी द्योतक है. वहीं शिवजी, जो संहारक हैं, जो तांडव करते हैं, जो विष को धारण करते हैं- उन्हें चंद्रमा की शीतलता की जरूरत थी. यही कारण है कि उनके मस्तक पर चंद्रमा का स्थान मिला. चलिए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से इसके पीछे की कथा और रहस्य को विस्तार से.

शिवजी पर चंद्रमा

चंद्रमा और भगवान शिव का गहरा संबंध
चंद्रमा को ज्योतिष में मन और भावनाओं का कारक माना गया है. वो शांति, सौम्यता और संतुलन के प्रतीक हैं. वहीं भगवान शिव तप, वैराग्य और संहार के प्रतीक हैं. जब ये दोनों शक्तियां एक साथ आती हैं, तो जीवन में संतुलन बनता है.
शिवजी का उग्र रूप अगर चंद्रमा की शीतलता से संतुलित न होता, तो उनका तेज असीमित हो जाता. यही वजह है कि चंद्रमा उनके मस्तक पर विराजमान हैं- ताकि उग्रता और शांति दोनों का समन्वय बना रहे. यह हमें भी सिखाता है कि जीवन में कठोरता और करुणा, दोनों का मेल जरूरी है.

शिव के मस्तक पर चंद्रमा बाईं ओर ही क्यों हैं?
अब सवाल यह है कि चंद्रमा मस्तक के दाईं तरफ नहीं बल्कि बाईं ओर ही क्यों विराजमान हैं?
ज्योतिष और योगशास्त्र के अनुसार शरीर में दो प्रमुख नाड़ियां होती हैं- पिंगला और इड़ा. दाहिनी ओर की नाड़ी पिंगला कहलाती है, जो सूर्य और पुरुष तत्व का प्रतिनिधित्व करती है. जबकि बाईं ओर की इड़ा नाड़ी चंद्र तत्व और स्त्री शक्ति का प्रतीक मानी जाती है. भगवान शिव के मस्तक के बाईं ओर चंद्रमा का होना इसी बात का संकेत है कि चंद्रमा स्त्री ऊर्जा, भावनाओं और शांति का प्रतिनिधित्व करते हैं. शिव के भीतर भी यह संतुलन जरूरी था- एक ओर उनका उग्र रूप और दूसरी ओर चंद्रमा की शीतलता.

Lord Shiva moon
शिवजी पर चंद्रमा

चंद्रमा और माता पार्वती का संबंध
पौराणिक मान्यता के अनुसार, चंद्रमा माता पार्वती का भी प्रतीक हैं. शिव के बाईं ओर पार्वती जी का वास है, जिन्हें शक्ति का रूप माना गया है. जब शिव और शक्ति एक साथ होते हैं, तो उन्हें “अर्धनारीश्वर” कहा जाता है.
चूंकि पार्वती जी शिव के बाईं ओर विराजती हैं, इसलिए चंद्रमा का उसी ओर होना स्वाभाविक है. यह दर्शाता है कि शिव और शक्ति अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं- जैसे उग्रता और कोमलता, वैराग्य और प्रेम, तपस्या और करुणा.

आध्यात्मिक संदेश
भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है. सिर्फ तपस्या या सिर्फ भावनाएं- दोनों ही अतिवाद हैं.
अगर जीवन में शिव की तरह दृढ़ता रखनी है, तो चंद्रमा की तरह शांति भी अपनानी होगी. यही शिव के चंद्रशेखर रूप का गूढ़ संदेश है- जीवन में उग्रता के साथ विनम्रता और दृढ़ता के साथ संवेदना जरूरी है.

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