आज सर्वार्थ सिद्धि योग में सावन पुत्रदा एकादशी, विष्णु पूजा में सुनें यह कथा, मिलेगा संतान सुख
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
एक दिन युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप सावन शुक्ल एकादशी की व्रत विधि और महत्व के बारे में बताएं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सावन शुक्ल एकादशी को सावन पुत्रदा एकादशी कहते हैं. यह व्रत संतानहीनों को पुत्र सुख प्रदान करने वाला है. जो लोग केवल सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा सुनते हैं, उनको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. अब सावन पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा सुनो.
पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा महीजित ने कई उपाय भी किए थे, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. एक दिन वह काफी दुखी था. उसने राज दरबार में सभा लगाई और लोगों से अपने संतानहीन होने की पीड़ा सुनाई. उसने कहा कि वह हमेशा दान, पुण्य, धर्म के काम करता है, प्रजा की सेवा करता है, लोगों के सुख और दुख में काम आता है. सभी को सुखी देखना चाहता है. इतना करने के बाद भी जीवन में कष्ट ही है. आज तक उसे कोई पुत्र प्राप्त नहीं हुआ. आप सभी बताएं कि ऐसा क्यों है? उसे आज तक पुत्र क्यों नहीं हुआ?
लोमश ऋषि तपस्वी थे. उन्होंने अपने तप के बल पर जान लिया कि पिछले जन्म में राजा ने धन प्राप्ति के लिए कई बुरे कर्म किए. पूर्वजन्म में राजा एक निर्धन वैश्य था. एक दिन वह भूख प्यास से परेशान होकर तलाब किनारे पहुंचा, जहां एक गाय पानी पी रही थी. तब उसने गाय को वहां से भगा दिया और स्वयं पानी पीने लगा. उस पाप कर्म का फल उसे इस जन्म में भोगना पड़ रहा है. इस वजह से उसे पुत्र सुख नहीं मिला.
सावन शुक्ल एकादशी को मंत्री और प्रजा ने मिलकर सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. विष्णु पूजा के बाद रात्रि जागरण किया. अगले दिन सुबह स्नान, दान के बाद पारण करके व्रत को पूरा किया. उन्होंने उस व्रत के पुण्य को अपने राजा महीजित को दान कर दिया. उस पुण्य के प्रभाव से राजा महीजित पाप मुक्त हो गए. रानी गर्भवती हुईं और समय आने पर उन्होंने सुंदर से बालक को जन्म दिया. इस प्रकार से राजा महीजित को पुत्र सुख की प्राप्ति हुई.
जो व्यक्ति विधि विधान से सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है, उसे भी राजा के समान पुत्र की प्राप्ति होती है. विष्णु कृपा से उसे पाप मिट जाते हैं. जीवन के अंत में उसे मोक्ष मिल जाता है.


